Monday, October 28, 2013

Perception

I was glaring through the window of a train,
and all I could see were trees the same.

They were standing in the middle of a field,
They were standing in the middle like a king.

I was thinking the purpose of their life,
And they must be thinking the same old thing.

And then I saw a barren old tree,
It was standing in the middle like an old King.

And then I saw its root so deep,
And then I realized its standing against wind.



Sunday, October 27, 2013

कुछ अनछुए जज़्बात

जब भी इस दिल को कुछ आरजू हुई,
महसूस किया  है तुमको.....
मेरे हर ज़ेहन में बसने लगा है तू ,
सोचता हूँ क्यूँ चाहा है इतना तुझको....

समझा न किसी ने गिला न हुआ,
पर तुमने भी समझा ना मुझको....
जाने दो यारो जी लेंगे हम,
सहारा दिया है सकी ने मुझको....

पूछते हो तुम की मैं पीता हूँ क्यूँ,
ज़माने का दर्द मिटाना है मुझको....
चाहत को मेरी भले तुम ना समझो,
न ही मुझे समझाना है तुमको....

जिंदगी कि तलाश

निकला था अपने घर से मैं जिंदगी की तलाश में,

चलते चलते थक गया रुका ना हार के,
कि ढूंढ़नी थी मंजिल मुझे दरिये थे लांगने

लम्बा था सफ़र मेरा तो हमसफ़र चुन लिया,
कुछ दूर साथ चल के वो भी ठहर गया

राह में कुछ मोड़ मुझको ऐसे मिले,
कुछ दूर जिनपे चल के मुझे लौटना पड़ा

चलता रहा मैं पत्थरों पे दर्द बहुत मिले,
रुका नहीं उनसे भी मैं कि शायद यही नसीब है

दिख गयी मंजिल मुझे पर रास्ता कठिन है,
चल रहा हूँ आज भी और हमसफ़र कई है

ना जाने कब एक रह पे मेरे कदम बहक गए,
ना जाने कब उस भीड़ में मैंने खुद को भुला दिया

गिरते गिरते बच गया कि अब संभल गया हूँ मैं
फिर से मंजिल कि रह पे अब चल पड़ा हूँ मैं